18 सितम्बर, 2018
मेरठ, उत्तर प्रदेश
सदियों से अनगिनत परम्पराओं को सींच रही नदियां वर्तमान में घातक रूप से प्रदूषित हो चुकी है. यहां तक कि गंगा एवं अन्य नदियों को निर्मल बनाने को लेकर बनाई गयी विशालतम परियोजना “नमामि गंगे” भी प्रदूषण के जहर के आगे मंद पड़ती नजर आने लगी है. गौरतलब है कि उत्तर भारत में नदियों की स्वच्छता के प्रयास लम्बे समय से अनवरत चलते आ रहे हैं, केवल सरकारें और योजनाएं बदलती चली गयी, परन्तु गंगा सहित अन्य बहुत सी नदिकाएं आज भी जस की तस है. अपने ही पुत्रों के हाथों शोषित एवं निरंतर कुपोषित. एनजीटी के आदेशों को टाक पर रखते हुए आज भी नालों का हानिकारक कैंसरयुक्त, विषाक्त जहर नदियों में उडेला जा रहा है.
नमामि गंगे अभियान के अंतर्गत यमुना की प्रमुख सहायक हिंडन नदी को भी शामिल किया गया है. हाल ही में हिंडन की अविरलता को बनाए रखने में बाधा उत्पन्न कर रहे कारखानों और नालों की पुष्टि कर उनपर रोक के आदेश राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण द्वारा दिए गये थे. परन्तु आईआईटी रुड़की की जुलाई माह में जारी रिपोर्ट से यह साफ़ हुआ है कि आज भी मुज्जफरनगर के नालों से हिंडन नदी में भारी मात्रा में कैंसरकारक रसायन उडेला जा रहा है. गत दिनों मेरठ मंडलायुक्त डॉ. प्रभात कुमार ने निर्मल हिंडन अभियान की अलख जगाई हुई थी, जिसके अंतर्गत हिंडन को मॉडल नदी के तौर पर विकसित करने के लिए प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, राजस्व व वन विभाग, विभिन्न एनजीओ, सामाजिक कार्यकर्ताओं समेत हिंडन किनारे बसे ग्रामों की जनता ने भी निर्मल हिंडन के लिए सहयोग दिया, किन्तु जिस प्रकार आज भी नालों के जरिये जहर हिंडन के हवाले किया जा रहा है, उससे तो इन सब प्रयासों को धक्का लगता नजर आ रहा है.
नीर फाउंडेशन के निदेशक रमनकांत त्यागी के अनुसार,
“आईआईटी रुड़की की यह रिपोर्ट बेहद खतरनाक है. मुजफ्फरनगर से बहने वाला यह विषाक्त कचरा हिंडन नदी में जहर की तरह घुला है और साथ ही मेरठ के भी छ: नालों का विषाक्त रसायन काली नदी पूर्वी को समाप्त कर रहा है. सब्जियों में भी कैंसरकारक रसायन मिल रहे हैं. मैंने एनजीटी में वाद दर्ज कराया है.”
नदियों में घुलनशील ऑक्सीजन कम होने से जलीय जीवन समाप्त हो चुका है और आस पास के पर्यावरण पर भी इसके गंभीर परिणाम देखने को मिल रहे हैं. इस दिशा में सुधार लाने के उद्देश्य से ही एनजीटी ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश के तमाम जिलों के भूजल को प्रदूषित मानते हुए आस पास के ग्रामों में पोर्टेबल ड्रिंकिंग वाटर की आपूर्ति का निर्देश दिया है तथा एनजीटी द्वारा नालों एवं नदियों में असंशोधित कचरा गिराने पर कड़ी फटकार भी लगाई गयी है.
पूर्व पर्यावरण वैज्ञानिक दिनेश पोशवाल ने इस मामले पर कहा कि,
“सीओडी व बीओडी का अधिक पाया जाना स्पष्ट करता है कि नालों में औद्योगिक अपशिष्ट का घनत्व अधिक है. इलेक्ट्रिक चालकता से भूमि लवणीय अथवा क्षारीय होकर खराब हो जाती है तथा पेस्टीसाइडस, शुगर, उर्वरक आदि से जुड़े कारखानों का कचरा नालों व नदियों में केमिकल ऑक्सीजन डिमांड बढ़ा रहा है.”