हिंडन नदी और इसकी सहायक नदियों की जल गुणवत्ता बहाल करने के उद्देश्य से 15 सितम्बर, 2018 को पर्यावरण निदेशालय, लखनऊ, उत्तर प्रदेश में राष्ट्रीय ग्रीन ट्रिब्यूनल, प्रिंसिपल बेंच, नई दिल्ली मानदंड 08.08.2018 के आदेशों के अनुसार गठित निगरानी समिति की दूसरी बैठक आयोजित की गयी. यह बैठक माननीय न्यायमूर्ति श्री एसयू खान (पूर्व न्यायाधीश, उच्च न्यायालय, इलाहाबाद), श्री जे. चंद्र बाबू ( वरिष्ठ वैज्ञानिक, सीपीसीबी) एवं श्री सुशील कुमार ( वैज्ञानिक ‘सी’, एमओईएफ व सीसी) की अध्यक्षता में सम्पन्न हुई. सम्मिलित सदस्यों में श्री मनोज सिंह (आईएएस, प्रधान सचिव, शहरी विकास, उत्तर प्रदेश, लखनऊ), श्रीमती कल्पना अवस्थी (आईएएस, प्रधान सचिव, उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, लखनऊ), यूपीपीसीबी के सदस्य सचिव श्री आशीष तिवारी, श्री ऋषिरेन्द्र कुमार (जिला मजिस्ट्रेट, बागपत), श्रीमती अर्चना वर्मा (मुख्य डिवीज़नल अधिकारी, मुजफ्फरनगर), श्री आनंद कुमार (अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट (एफआर) मेरठ), श्री एस पी साहू (विशेष सचिव, उत्तर प्रदेश, लखनऊ), श्री उमेश चंद्र (उप सचिव, सिंचाई, उत्तर प्रदेश), डॉ मधु सक्सेना (स्वास्थ्य निदेशक, उत्तर प्रदेश, लखनऊ), श्री अजय रस्तोगी (मुख्य अभियंता, यूपी जल निगम, लखनऊ), श्री जी एस श्रीवास्तव (मुख्य अभियंता, यूपी जल निगम, गाजियाबाद), श्री एच.एन सिंह (अधीक्षक अभियंता, सिंचाई (ड्रेनेज) गाज़ियाबाद), श्री भारत भूषण (कार्यकारी अभियंता, प्रथम निर्माण डिवीजन, यूपी जल निगम, गाजियाबाद), श्री सीता राम (कार्यकारी अभियंता, डिवी -1, यूपी जल निगम,मेरठ), श्री संजय कुमार गौतम (कार्यकारी अभियंता, यूपी जलनिगम, बागपत), डॉ एबी अकोलकर (पूर्व सदस्य सचिव, सीपीसीबी), डॉ सी.वी. सिंह, श्री आर के त्यागी (क्षेत्रीय अधिकारी, यूपीपीसीबी, मेरठ), श्री एमके त्यागी (एईई, यूपीपीसीबी, मेरठ), डॉ पी चंद्र (एएसओ, यूपीपीसीबी, मुजफ्फरनगर), श्री आर के सिंह (सीपीसीबी, आरडी, लखनऊ), श्री डीके सोनी (सीपीसीबी, आरडी, लखनऊ), डॉ सरेश राय (सीपीसीबी, आरडी, लखनऊ), डॉ सुषमा चंद्रा (मुख्य चिकित्सा अधिकारी, बागपत), डॉ पीके गौतम (एडीएल, मुख्य चिकित्सा अधिकारी, मेरठ), सुश्री अल्का सिंह (मुख्य चिकित्सा अधिकारी प्रतिनिधि,मुजफ्फरनगर), श्री वीपीएस तोमर (एई, यूपी जल निगम, शामली), श्री देवेंद्र कुमार (कार्यकारी अभियंता, यूपी जल निगम, गाज़ियाबाद), श्री ए के तिवारी (क्षेत्रीय अधिकारी, यूपीपीसीबी, गाजियाबाद / ग्रेटरनोएडा), डॉ प्रतिमा अकोलकर (सीपीसीबी), डॉ पीके गौतम, श्री गोपाल सिंह (मुख्य अभियंता, डब्ल्यूआर सिंचाई विभाग), श्री राकेश चौधरी (परियोजना प्रबंधक, यूपी जल निगम,सहारनपुर), श्री पी के अग्रवाल (कार्यकारी अभियंता, यूपी जल निगम मुजफ्फरनगर), श्री पारस नाथ (सीईओ -3, यूपीपीसीबी), यूपीपीसीबी के सीईओ डॉ अख़लाक़ हुसैन, श्री राधे श्याम (ईई, सी -1, यूपीपीसीबी), डॉ सीता राम (गंगा पर्यावरण विशेषज्ञ, एसपीएमजी, यूपी), डॉ अनिल कुमार सिंह (क्षेत्रीय अधिकारी, यूपीपीसीबी, नोएडा), श्री उत्सव शर्मा (एईई, यूपीपीसीबी, ग्रेटर नोएडा), श्री पी के अग्रवाल (कार्यकारी अभियंता, यूपी जल निगम मुजफ्फरनगर), श्री राकेश चौधरी (परियोजना प्रबंधक, सहारनपुर), मनीष दीक्षित (सीओ, यूपीपीसीबी), डॉ सर्वेश राय (वैज्ञानिक ‘सी’ सीपीसीबी, आरडी (एम) ), श्री एस आर मौर्य (क्षेत्रीय अधिकारी, यूपीपीसीबी, सहारनपुर), श्री जे बी एस सिंह (एईई, यूपीपीसीबी, सहारनपुर) इत्यादि रहे.
अनुपालन रिपोर्ट में निष्क्रियता को गंभीरता से देखा जाएगा :
बैठक का प्रारंभ माननीय अध्यक्ष की अनुमति के उपरांत उनके स्वागत पत्र के साथ हुआ. माननीय अध्यक्ष ने हिंडन नदी और इसकी सहायक नदियों की जल गुणवत्ता बहाल करने के लिए समय रेखा के भीतर कार्य योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए आवश्यक कार्रवाई करने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला.
श्री जे. चंद्र बाबू और उनकी निगरानी समिति के सदस्यों ने हिंडन, पश्चिम काली और कृष्णा के प्रदूषण से निपटने के उद्देश्य से माननीय एनजीटी द्वारा सहारनपुर, बागपत, गाजियाबाद, मुजफ्फरनगर, शामली, मेरठ और गौतमबुद्ध नगर के जिलों में इन नदियों और इनके पुनरुत्थान के प्रयासों की विभिन्न दिशाओं को दोहराया. उनके अनुसार प्रत्येक दिशा के अनुपालन में विभिन्न प्राधिकरणों/विभागों द्वारा की गई कार्रवाई की निगरानी का यह उचित समय है.
निगरानी समिति द्वारा गहन चिंता व्यक्त करते हुए स्पष्ट किया गया कि अनुपालन रिपोर्टों के समय पर जमा करने और सभी संबंधित अधिकारियों/विभागों द्वारा की गई कार्रवाई की रिपोर्ट मिलना अनिवार्य है. अनुपालन रिपोर्ट/कार्रवाई में देरी या चूक एक चिंताजनक स्थिति है, जिसे आगे बढ़ने की अनुमति नहीं दी जा सकती है. निगरानी समिति ने निर्देश दिया कि सभी संबंधित अधिकारियों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सभी प्रासंगिक और सहायक दस्तावेजों के साथ अनुपालन रिपोर्टों का होना आवश्यक है, जिससे समिति के सचिव समय-समय पर अगली बैठक से कम से कम चार दिन पहले आगे की चर्चा और आवश्यक दिशा-निर्देश/कार्रवाई के लिए रिपोर्ट का उचित विश्लेषण कर सके.
निगरानी समिति ने यह भी रेखांकित किया कि यह समस्या के समाधान करने के प्रत्येक वैध तरीके अथवा साधन के लिए उपलब्ध है. निगरानी समिति के अध्यक्ष श्री जे चंद्र बाबू ने पेशकश की, कि वह स्वयं 365 दिन एवं 24 घंटे हिंडन समस्या पर विचार-विमर्श के लिए उपलब्ध हैं.
बैठक में यह सुनिश्चित किया गया कि हिंडन नदी के मामले में सीधे/परोक्ष रूप से शामिल सभी अधिकारियों और विभागों को यह सुनिश्चित करना होगा कि अब चार प्रतियों में विधिवत हस्ताक्षरित प्रमाणित कार्रवाई की गई रिपोर्ट/अनुपालन रिपोर्ट अनिवार्य रूप से सचिव श्री प्रमोद कुमार गोयल को प्रदान करनी होगी और इसमें किसी भी प्रकार की विफलता, निष्क्रियता, या चूक को गंभीरता से देखा जाएगा.
पॉवर पॉइंट प्रेजेंटेशन (पीपीटी) के माध्यम से हिंडन समस्या का ब्यौरा :
उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, लखनऊ के सदस्य सचिव श्री आशीष तिवारी जी ने निगरानी समिति की अनुमति से हिंडन नदी की पॉवर पॉइंट प्रेजेंटेशन (पीपीटी) सबके सम्मुख रखी. उन्होंने कई स्लाइडों में पीपीटी का प्रदर्शन किया, जिसमें इंगित किया गया कि हिंडन नदी सहारनपुर जिले की ऊपरी शिवालिक सीमा से उभरती है और गौतमबुद्ध नगर (यूपी) में यमुना नदी से मिल जाती है. इसके अतिरिक्त अपनी 400 कि.मी. की यात्रा में यह उत्तर प्रदेश के सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, शामली, मेरठ, बागपत, गाजियाबाद, गौतमबुद्ध नगर इत्यादि जिलों में बहती है.
पीपीटी के दौरान अतिरिक्त आयुक्त मेरठ डिवीजन ने हिंडन कायाकल्प के बारे में एक हस्ताक्षरित वर्णन प्रस्तुत किया, जो चार रिपोर्टों के अनुलग्नक को निर्दिष्ट करता है (i) उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट, (ii) संयुक्त कृषि निदेशक की रिपोर्ट, (iii) अधीक्षक अभियंता, ड्रेनेज, गाजियाबाद मंडल की रिपोर्ट, और (iv) अधीक्षक अभियंता, जल निगम, मेरठ की रिपोर्ट, परन्तु पीपीटी के अनुसार कहा गया कि चार रिपोर्टों में से कोई भी वास्तव में संलग्न नहीं हुई है. यह हिंडन मुद्दे के प्रति संवेदन-शुन्यता और अप्रवीण दृष्टिकोण दर्शाता है. समिति को दी गई किसी भी रिपोर्ट और दस्तावेज को पूर्ण एवं विधिवत हस्ताक्षरित/प्रमाणित होना चाहिए.
प्रस्तुत की गयी पीपीटी से यह संकेत मिलता है कि उत्तर प्रदेश राज्य में हिंडन नदी का 355 किलोमीटर का मार्ग दो राजस्व विभागों, अर्थात् सहारनपुर डिवीजन (जिसमें तीन राजस्व जिले, सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, शामली एवं 21 स्थानीय निकाय) और मेरठ डिवीजन ( जिसमें चार राजस्व जिलें अर्थात् मेरठ, बागपत, गाजियाबाद, गौतमबुद्ध नगर और 15 स्थानीय निकाय) सम्मिलित हैं. इसके साथ ही हिंडन नदी के मार्ग पर 227 गांव (सहारनपुर डिवीजन में 157 और मेरठ डिवीजन में 70), जिनमें से 106 गांवों में जल अत्याधिक प्रदूषित है एवं शुद्ध पेयजल का अभाव है. रिपोर्ट में यह भी संकेत मिलता है कि हिंडन नदी के कुल जलग्रहण क्षेत्र में से 35% जिला सहारनपुर, 24% जिला मुजफ्फरनगर, 12% जिला बागपत, 10% जिला गौतम बुद्ध नगर में, 06% जिला शामली में, 05% जिला मेरठ में, 06% जिला गाजियाबाद में और शेष 2% हरिद्वार (उत्तराखंड राज्य) में है. इस प्रकार यह स्पष्ट है की नदी का 98% जलग्रहण क्षेत्र उत्तर प्रदेश में ही है.
पीपीटी द्वारा दिखाई गयी स्लाइड्स ने इंगित किया कि मानसून सीजन के अतिरिक्त सहारनपुर के अपस्ट्रीम पर हिंडन नदी सूखी है और नदी में प्रवाह सहारनपुर शहर के नगरपालिका सीवेज के निर्वहन और सहकर्मपुर के मैसर्स स्टार पेपर मिल के औद्योगिक प्रदूषण के साथ होता है. इसके अलावा काली (पश्चिम) और कृष्णा नदी, जो कि हिंडन नदी की सहायक नदियां हैं और गैर मानसून के मौसम में अपस्ट्रीम पर सहायक होती हैं, वह भी केवल सीवेज और औद्योगिक प्रदूषण से प्रवाहित हो रही हैं.
मेरठ डिवीजन के अतिरिक्त आयुक्त द्वारा प्रस्तुत किये गये अप्रमाणित विवरण में निर्दिष्ट है कि पांव धोई [7 किमी], कृष्णी [153 किमी], धामोला [52 किमी] और पश्चिम काली [145 किमी] हिंडन नदी की सहायक नदियों में शामिल हैं. हालांकि, निर्मल हिंडन प्रोजेक्ट (अक्टूबर-दिसंबर 2017) के तहत मेरठ डिवीजन के आयुक्त द्वारा कार्यालय से प्रकाशित ‘हिंडन माटी’ पुस्तिका (पेज 05 पर) चार और नदियों अर्थात शीला – 61 किमी, नागदेव – 45 किलोमीटर, चाचा पंक्ति – 18 किमी और पुर का टांडा – 08 किलोमीटर को भी हिंडन नदी की सहायक नदियों के रूप में अभिव्यक्त किया गया था. यूपीपीसीबी द्वारा हिंडन की सहायक नदियों के बारे में तथ्यों को सत्यापित करने की आवश्यकता है, ताकि किसी भी असमानता या असंगतता के बिना एक स्पष्ट पारदर्शी तस्वीर ज्ञात हो सके.
पीपीटी यह सूचना भी प्रदान करती है कि हिंडन नदी में सीवेज का कुल प्रवाह 717 एमएलडी है. 669.5 एमएलडी की क्षमता वाले कुल 13 एसटीपी हैं, जिनमें से 513.5 एमएलडी परिचालन क्षमता के साथ 10 एसटीपी चल रहे हैं और तीन (गाजियाबाद जिले में सभी 03) सीवर नेटवर्क कनेक्टिविटी के कारण कार्यात्मक नहीं हैं. दावा किया गया है कि 10 एसटीपी (सहारनपुर में 01, गाजियाबाद में 06, नोएडा में 01, ग्रेटर नोएडा में 01 और मुजफ्फरनगर में 01) मानकों के अनुसार कार्य कर रहे हैं. पीपीटी 203.5 एमएलडी की कमी दिखाता है. इस प्रकार 203.5 एमएलडी सीवेज (08 एमएलडी सीवेज में से 08 एमएलडी बागपत जिले में, 446 एमएलडी सीवेज में से 78 एमएलडी गाजियाबाद जिले में, 125 एमएलडी में से 87 एमएलडी सीवेज सहारनपुर जिले में, 63 एमएलडी सीवेज में से 30.5 एमएलडी मुजफ्फरनगर जिले में) का संशोधन नहीं किया जाता है. समिति को सूचित किया गया कि बागपत जिले में कोई ऐसा एसटीपी स्थापित नहीं किया गया है, जो 08 एमएलडी सीवेज उत्पन्न करता है. यह बताते हुए कि 03 एसटीपी, जो पहले से ही गाजियाबाद जिले में स्थापित किये गये हैं, लेकिन सीवर नेटवर्क की कनेक्टिविटी के अभाव में गैर-कार्यात्मक है, समिति ने निर्देश दिया कि इस विषय पर संबंधित तथ्यों को इससे जुड़े विभाग द्वारा संज्ञान में लिया जाये, जिससे अगली बैठक में समिति इस पर सकारात्मक रूप से विचार-विमर्श कर सके.
अधिकारिक वेबसाइट की उपयोगिता पर बल :
माननीय राष्ट्रीय ग्रीन ट्रिब्यूनल को इस विषय पर जानकारी प्राप्त करने और देने के लिए एक मानक वेबसाइट स्थापित करने के लिए निर्देशित किया गया है. प्रथम बैठक में इस मुद्दे को रखा गया था, जब यूपी राज्य सरकार के मुख्य सचिव से सभी संबंधित दस्तावेज विशेष रूप से राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र (एनआईसी) को निर्देशित करने के लिए कहा गया ताकि मुद्दे पर जानकारी प्राप्त करने और जानकारी देने की प्रगति को सुगम बनाने के लिए वेबसाइट विकसित कर सके. इस विषय पर ई-मेल द्वारा सभी विवरण पहले से ही उपलब्ध कराए गए थे, लेकिन इस मामले में कोई भी प्रतिक्रिया नहीं की गयी. साथ ही इस मुद्दे पर कोई भी प्रगति निगरानी समिति के समक्ष नहीं रखी गई है. इसके चलते बैठक में निर्णय लिया गया कि यूपी राज्य सरकार के मुख्य सचिव से फिर से सभी संबंधित लोगों को वेब साइट विकसित करने के लिए तत्काल कदम उठाने का निर्देश दिया जाएगा तथा मामले में जारी प्रत्येक प्रगति की प्रति सचिव श्री प्रमोद कुमार गोयल को प्रदान की जाएगी, जो इस मामले में प्रगति से निगरानी समिति को अवगत कराएंगे.
साथ ही एक अंतरिम उपाय के रूप में यह भी निश्चित किया गया कि सभी संबंधित विभागों/निगमों/ अधिकारियों को उनकी आधिकारिक वेबसाइट पर एक विशिष्ट पृष्ठ खोलने के लिए निर्देशित किया जाना चाहिए, जिसे एनजीटी के निर्देशों के साथ-साथ की गई कार्रवाई के संबंध में नवीनतम डेटा के साथ चक्रीय रूप से अद्यतन किया जाएगा. प्रत्येक दिशा का अनुपालन उचित प्रकार से किया जाएगा. इस पृष्ठ पर आने वाले लोगों को हिंडन, उसकी सहायक नदियों और उसमें विलय होने वाले नालों के संबंध में अपनी शिकायत, अपेक्षाओं और सुझावों को पोस्ट करने के लिए ग्रीवांस का कॉलम उपलब्ध कराना चाहिए. ग्रीवांस कॉलम के अंतर्गत वास्तविक और प्रमाणित कदमों के विवरण के साथ लोगों द्वारा की गई शिकायतें वेब साइट पर अपलोड की जानी चाहिए. बैठक में तय किया गया कि उपरोक्त विवरणों का संकलन प्रत्येक माह ऐसे कार्यालय/विभाग/प्राधिकरण/निगम द्वारा तैयार किया जाएगा और इसके चार सेट निगरानी समिति के सचिव को प्रदान किए जाएंगे, जो इस समिति के सामने उन्हें प्रस्तुत करेंगे. इसके साथ ही सभी संबंधित विभाग एवं अधिकारी यह सुनिश्चित करेंगे कि खोला गया वेबसाइट पेज अनुपालन की सभी प्रामाणिक शर्तों को पूरा करे.
शैक्षिक संस्थानों की भागीदारी :
उम्मीदवारों को जागरूकता और परिणामों के बारे में प्रतिक्रिया देने के लिए शैक्षणिक संस्थानों को हिंडन स्वच्छता अभियान में शामिल करने के लिए इस समिति को अनुमति देने के संबंध में एनजीटी की मंजूरी से इस समिति द्वारा पहली बैठक में विचार किया गया था कि बागपत / शामली / गाज़ीबाद / मेरठ / मुजफ्फरनगर / सहारनपुर / गौतमबुद्ध नगर के जिला मजिस्ट्रेट ऐसे शैक्षिक संस्थानों की पूरी सूची प्रदान करें, जो अभियान में शामिल होने के लिए तैयार हैं. अनुपालन और रिपोर्ट के लिए ई-मेल द्वारा बैठक के मिनट्स को प्रसारित किया गया था. हालांकि इस मामले में सात जिला मजिस्ट्रेटों में से किसी के द्वारा कोई ठोस कदम नहीं उठाए गये हैं.
बैठक में यह निर्णय लिया गया कि मेरठ और सहारनपुर डिवीजनों से सभी संबंधित विभागों के आयुक्त द्वारा अनुपालन में तत्काल कार्रवाई के लिए सभी अधिकारियों को निर्देशित करने का अनुरोध किया जाना चाहिए. इस मामले में उठाए गए कदम की रिपोर्ट सात दिनों के भीतर इस निगरानी समिति के सचिव को प्रदान की जाएगी, जो समिति के समक्ष इसे पेश करेगी.
स्थानीय निवासियों को शुद्ध पेयजल प्रदान करना :
एनजीटी के अवलोकन के अनुसार, एक कल्याणकारी राज्य में, राज्य सरकार अपने नागरिकों के बेहतर स्वास्थ्य को सुनिश्चित करने की दिशा में बाध्य होती है. इसी के चलते इस समिति द्वारा पहली बैठक में हिंडन जलग्रहण क्षेत्र में सभी लोगों को पीने योग्य पेयजल प्रदान किये जाने की बात रखी गयी थी और अनुपालन के अंतर्गत निम्नलिखित विभागों को पूर्ण विवरण प्रदान करने के लिए अनुरोध किया गया था..
1. उत्तर प्रदेश जल निगम,
2. नगर निगम मेरठ,
3. नगर निगम सहारनपुर,
4. नगर निगम, मुजफ्फरनगर,
5. नगर पालिका परिषद, शामली,
6. नगर पालिका परिषद, बागपत,
7. नगर निगम, गाजियाबाद और
8. नोएडा प्राधिकरण
हालांकि, इस मामले में विभाग संख्या 02 से 08 तक अधिकारियों से कोई रिपोर्ट नहीं मिली है. बैठक में विचार-विमर्श के दौरान, यूपी जल निगम अधिकारी ने मुख्य अभियंता द्वारा हस्ताक्षरित एक सारणीबद्ध बयान प्रस्तुत किया. प्रस्तुत किए गए बयान में हस्ताक्षर प्राधिकरण का नाम और पूर्ण पदनाम नहीं है. बैठक में कहा गया कि यह बेहतर होगा यदि रिपोर्ट में हस्ताक्षर प्राधिकरण का पूरा नाम और पदनाम दिया गया हो. इसके अलावा बैठक से कम से कम चार दिन पहले निगरानी समिति के सचिव को अनुपालन रिपोर्ट या कोई अन्य रिपोर्ट प्रदान की जाये, जिससे बैठक में रिपोर्ट के सभी तथ्यों पर सार्थक विचार-विमर्श के लिए विधिवत जांच की जा सके. बयान इंगित करता है कि :
1. सहारनपुर जिले में 15 हैंड-पंप (इंडिया मार्क -2) स्थापित किए गए और परीक्षण के उपरांत सभी को हटा दिया गया, क्योंकि सभी का पानी दूषित पाया गया था. सुरक्षित पेयजल प्रदान करने के लिए 03 पनडुब्बी पंप (@ 45 एलपीएम) स्थापित किए गए हैं.
2. मेरठ जिले में 1126 हैंड-पंप (इंडिया मार्क -2) स्थापित किए गए हैं और परीक्षण के पश्चात 78 हैंड-पंपों को दूषित जल देने के कारण हटा दिया गया है. बाकी 1048 हैंड पंप कार्यात्मक हैं और सुरक्षित पेयजल के लिए उपलब्ध हैं.
3. गाजियाबाद जिले में 61 हैंड-पंप (इंडिया मार्क -2) स्थापित किए गए हैं और केवल 51 हैंड पंपों का परीक्षण किया गया है, जिनमें से 10 को जल प्रदूषण के कारण हटा दिया गया है. बाकी 41 हैंड पंप कार्यात्मक हैं और पीने के पानी के लिए उपलब्ध हैं. यह देखा गया है कि सभी स्थापित हैंड-पंपों में 61 से 51 हैंड-पंप की पानी की गुणवत्ता का परीक्षण किया गया है. यहां मूल प्रशन यह उठाया गया कि शेष 10 हैंड-पंपों की पानी की गुणवत्ता का परीक्षण क्यों नहीं किया जा सका? यूपी जल निगम में अधिकारियों को इसका स्पष्टीकरण जमा करने के लिए कहा गया.
4. शामली जिले में 1928 हैंड-पंप (इंडिया मार्क-2) स्थापित किए गए हैं और उनमें से केवल 1654 पानी की गुणवत्ता के लिए परीक्षण किए गए हैं और 229 हैंड-पंपों को दूषित पाया गया है. उन 229 हैंड-पंपों में से 137 को हटा दिया गया है. इस तरह यह प्रश्न उठता है कि शेष 274 हैंड-पंपों की जल गुणवत्ता का परीक्षण क्यों नहीं किया गया और दूषित पानी के शेष 92 हैंड-पंप सील क्यों नहीं किए गए हैं? यूपी जल निगम में अधिकारियों को अपनी प्रतिक्रिया जमा करने के लिए कहा गया है.
5. मुजफ्फरनगर जिले में 3045 हैंड-पंप (इंडिया मार्क -2) स्थापित किए गए हैं और उन 3045 हैंड-पंपों से 2806 हैंड-पंप की जल गुणवत्ता का परीक्षण किया गया. पाए गये 201 दूषित हैंड-पंपों को हटा दिया गया हैं. शेष 2602 हाथ पंप सुरक्षित, कार्यात्मक और पीने के पानी के लिए उपलब्ध हैं. यह देखा गया है कि सभी स्थापित में 3045 से 2806 हैंडपंप की पानी की गुणवत्ता का परीक्षण किया गया है. इस प्रकार विवादास्पद यह है कि शेष 239 हैंड-पंपों की पानी की गुणवत्ता का परीक्षण क्यों नहीं किया जा सका. इसके अलावा, जब स्कैनर के तहत 2806 हैंड-पंप में से 201 हैंडपंप की जल गुणवत्ता को असुरक्षित पाया गया, तो इस लिहाज से 2602 हैंड-पंप पीने के पानी के लिए सुरक्षित कैसे हैं? यहां गणितीय आंकड़ा गड़बड़ है. यूपी जल निगम में अधिकारियों को स्पष्टीकरण जमा करने दें.
6. बागपत जिले में 3740 हैंड-पंप (इंडिया मार्क -2) स्थापित किए गए हैं और उन 3740 हैंड-पंपों से 3130 हैंड-पंप की पानी की गुणवत्ता का परीक्षण किया गया है और 555 के जल को दूषित पाया गया है. उन 555 हैंड-पंप में से 425 हैंड-पंप हटा दिए गए हैं, जबकि शेष 2575 हाथ पंप सुरक्षित, कार्यात्मक और पीने के पानी के लिए उपलब्ध हैं. यह देखा गया है कि सभी स्थापित 3740 हैंड-पंपों में से 3130 हैंड-पंप की जल गुणवत्ता का परीक्षण ही अभी किया जा सका है. इस प्रकार यह तर्क योग्य है कि शेष 610 हैंड-पंपों की जल गुणवत्ता का परीक्षण क्यों नहीं किया जा सका. इसके अतिरिक्त, जब स्कैनर के तहत 3130 हैंड-पंप से 555 हैंड-पंप की पानी की गुणवत्ता असुरक्षित पाई गई है, तो दूषित पानी के साथ 130 हैंडपंप शेष क्यों नहीं सील किए गए हैं. यूपी जल निगम में अधिकारियों को स्पष्टीकरण जमा करने दें.
भूजल के निष्कर्षण पर प्रतिबंध:
एनजीटी के दिशा-निर्देशों के आधार पर जिला बागपत और अन्य जिलों के क्षेत्र में जहां से सभी हैंड-पंप के नमूने एकत्र किए गए थे और भूजल के प्रदूषण पाए गए थे, वहां पेय उद्देश्यों के लिए भूजल के निष्कर्षण पर पूर्ण प्रतिबंध होना निश्चित किया गया था. निगरानी समिति ने पहली बैठक में विचार किया था कि इन सभी क्षेत्रों में दूषित हैंड-पंपों को तुरंत सील करने के आदेश दिए जायें. साथ ही जिला मजिस्ट्रेट, बागपत और अन्य सभी संबंधित जिलों और विभागों से अनुरोध किया गया था कि वे उपर्युक्त दिशाओं के अनुपालन में किए गए प्रत्येक कदम के पूर्ण विवरण को प्रस्तुत करें. हालांकि इस मामले में किसी भी कार्यालय से कोई रिपोर्ट प्राप्त नहीं हुई है. ऐसा देखा गया है कि इस समिति की पहली बैठक में श्री आरके त्यागी, क्षेत्रीय अधिकारी, यूपीपीसीबी, मेरठ ने सूचित किया था कि एनजीटी के आदेश के अनुपालन में सरधाना ब्लॉक, मेरठ के अंतर्गत मडियाई गांव में दो प्रदूषित हैंड-पंपों और रामाला शुगर मिल गेस्ट हाउस के पास सड़क के किनारे स्थित हैंड पंप को नष्ट कर दिया गया था, क्योंकि उनमें से पानी फ्लोराइड के खतरनाक स्तर तक दूषित था.
मुख्य अभियंता, यूपी जल निगम, गाजियाबाद ने बताया कि कुल 1928 में से (सहारनपुर में 15, मेरठ में 1126, गाजियाबाद में 61, शामली में 1928, मुजफ्फरनगर में 3045 और बागपत में 3740) 1088 हैंड-पंप (सहारनपुर में 15, मेरठ में 78, गाजियाबाद में 10, शामली में 137, मुजफ्फरनगर में 201 और बागपत में 425) लाल चिन्हित किये गये थे. कार्यकारी अभियंता, जल निगम, गाजियाबाद, ने भी इसी प्रकार मौखिक रूप से सूचना दी कि उनके क्षेत्र में आने वाले 3,740 हैंड-पंपों में से 459 लाल चिह्नित किये गये हैं और उखाड़ फेंक दिए गए हैं. यहां उल्लिखित सारणीबद्ध रिपोर्ट में कुछ भिन्न डेटा दिखाई देता है. कार्यकारी अभियंता, यूपी जल निगम, गाजियाबाद को विसंगति दूर करने के लिए बेहतर विवरण प्रदान करने के लिए कहा गया. विचार-विमर्श के दौरान जल निगम प्राधिकरणों ने यह भी बताया कि वर्तमान में पंचायतों को फिर से बोर का अधिकार है. स्थिति के इस दृष्टिकोण में, सभी सात पूर्व-विस्तृत जिलों के जिला मजिस्ट्रेट को अपने अधिकार क्षेत्र में पंचायतों से पूर्ण रिपोर्ट प्राप्त करने और मिनटों के संचार से 10 दिनों के भीतर इस निगरानी समिति के सचिव को प्रदान करने का संकल्प किया गया.
प्रभावित इलाके में आबादी के लिए पेयजल की आपूर्ति के बारे में पूछे जाने पर, जल निगम के अधिकारियों ने फिर से सबमिट किया कि पीने योग्य पानी 7694 हैंड-पंपों और 3 सबमर्सीबल के माध्यम से पर्याप्त रूप से उपलब्ध कराया जा रहा है. इसी कारण से क्षेत्र में एनजीटी द्वारा निर्देशित जल टैंकरों का उपयोग करके पीने योग्य पेयजल की आपूर्ति नहीं करवाई जाती है.
शहरी विकास, यूपी के प्रधान सचिव ने अनुनय करते हुए कहा कि मानकों के अनुसार 250 व्यक्तियों के लिए एक हैंड-पंप था, जिसे संशोधन के अनुसार प्रति 150 लोगों के लिए एक हैंड-पंप में परिवर्तित कर दिया गया था. जबकि वर्तमान में मानक प्रति 75 व्यक्तियों पर एक हैंड-पंप है. उपर्युक्त तथ्य स्पष्ट करते हैं कि यूपी जल निगम और अन्य स्थानीय निकायों ने अभी तक प्रभावित क्षेत्र में पीने योग्य जल की आपूर्ति के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया है.
मुख्य अभियंता, जल निगम, गाजियाबाद द्वारा यह भी सूचित किया गया कि उत्तर प्रदेश राज्य सरकार द्वारा प्रशासनिक और वित्तीय अनुमोदन के लिए पाइप जल आपूर्ति (ट्यूब वेल आपूर्ति) के लिए एक व्यापक योजना तैयार की गई है और आवश्यक धन आवंटित किए जाने के बाद निष्पादन शुरू हो जाएगा. उस योजना के प्रतिलिपि की आपूर्ति करने के संबंध में जब अधिकारी से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि ऐसी कोई रिपोर्ट उनके पास उपलब्ध नहीं थी.
पीड़ितों का चिकित्सकीय उपचार:
एनजीटी आदेश में रिकॉर्ड किया गया है कि क्षेत्र में परिचालन करने वाले विभिन्न उद्योगों के निर्वहन के कारण फैले प्रदूषण के परिणामस्वरूप कई निवासियों को विभिन्न जल जनित बीमारियों से पीड़ित हैं, जिन्हें उचित उपचार की आवश्यकता है. इस समिति ने अपनी पहली बैठक में मेरठ, सहारनपुर, शामली, गाजियाबाद, मुजफ्फरनगर, बागपत और गौतमबुद्ध नगर के जिला मजिस्ट्रेटों के द्वारा मुख्य चिकित्सा अधिकारियों से अनुरोध करने का संकल्प किया था, ताकि इस तरह के पीड़ितों की, जो पानी के प्रदूषण के नतीजे बीमारी का सामना कर रहे हैं, उनके इलाज के लिए उठाए गए कदमों, उनके उपचार में खर्च किए गए धन का स्रोत और प्रत्येक ऐसे रोगी की वर्तमान स्थिति से जुड़ी व्यापक सूची प्रदान की जा सके. बैठक में यह भी निर्देशित किया गया था कि रिपोर्ट के अंतर्गत क्षेत्र में जल प्रदूषण के लिए परिचालन करने वाले उद्योगों के विवरण और उपरोक्त उपचार में खर्च की गई राशि की वसूली के लिए उठाए गए कदमों का भी संकेत होना चाहिए. मीटिंग के मिनट्स ई-मेल द्वारा सूचित किए गए थे, परन्तु अभी भी मुख्य चिकित्सा अधिकारी बागपत (डॉ सुषमा चन्द्र) के अतिरिक्त, संबंधित किसी भी प्राधिकारी द्वारा कोई रिपोर्ट उपलब्ध नहीं करायी गयी है.
बागपत की चीफ मेडिकल ऑफिसर डॉ सुषमा चन्द्र ने ई-मेल द्वारा अपनी रिपोर्ट (परन्तु कोई भी अनुलग्नक समझने योग्य नहीं था) भेजी गयी. जिसमें जिला मजिस्ट्रेट को संबोधित किया गया है. बागपत पत्र संख्या सीएमओ/एनजीटी/2016-17/3956, दिनांक 22.09.2018 को ईमेल द्वारा प्रदान की गई रिपोर्ट से संकेत मिलता है कि:
1. 26.09.2016, 28.09.2016, और 03.01.2016 को गांवों (गांवों का नाम रिपोर्ट में निर्दिष्ट नहीं किया गया) में चिकित्सा शिविर आयोजित किए गए थे.
2. बहुत से प्रयासों के बावजूद 312 ग्रामीणों में से 114 ग्रामीणों की पहचान की गयी और उनमें से केवल 15 भारी धातुओं की विषाक्तता के संभावित पीड़ितों को जांच के लिए संदर्भित किया गया था.
3. विशेषज्ञ चिकित्सा अधिकारी डॉ. राजेश कुमार की 27.01.2016 की रिपोर्ट के अनुसार, रिपोर्ट में मिली बीमारियां जल प्रदूषण आधारित भारी धातु विषाक्तता के परिणामस्वरूप नहीं थीं.
4. 21.10.2016 को जिला मजिस्ट्रेट, बागपत ने भरी धातु विषाक्तता से पीड़ित संभावित 15 मरीजों के इलाज के लिए नेशनल वेक्टर बोर्न डिजीज कंट्रोल प्रोग्राम के तहत 2,50,000 लाख रुपये की फंड राशि मंजूर की गयी.
5. उन पंद्रह स्पष्ट पीड़ितों के रोगजनक परीक्षण के लिए पीएचसी, बिनौली (बागपत) में व्यवस्था की गई थी, परन्तु उन 15 में से केवल एक ही मरीज उपस्थित हुआ. परीक्षण रिपोर्टों से संकेत मिलता है कि उनमें से कोई भी बीमारी भारी धातुओं के जहरीले प्रभावों के कारण नहीं थी. इसलिए यह कहना उचित नहीं है कि पंद्रह पहचाने गए मरीजों को दूषित पानी में भारी धातु विषाक्तता के कारण बीमारी का सामना करना पड़ा है.
बैठक में विचार-विमर्श के दौरान, स्वास्थ्य निदेशक, उत्तर प्रदेश सुश्री मधु सक्सेना इस मामले में कोई जानकारी नहीं दे सकी. उनके अनुसार वह हाल ही में कार्यक्रम में शामिल हुई हैं. बैठक में दस दिनों के भीतर अद्यतन डेटा के साथ एक पूर्ण रिपोर्ट प्रदान करने के लिए स्वास्थ्य निदेशक, उत्तर प्रदेश को निर्देशित करने के लिए कहा गया.
समिति का मानना है कि सामाजिक और निवारक चिकित्सा विभाग को भी हिंडन नदी के तटीय क्षेत्र में बीमारी की रोकथाम और इलाज के लिए शामिल होना चाहिए. बैठक में कहा गया कि प्रधान सचिव, उत्तर प्रदेश कृपया इस मामले की जांच करेंगे और सभी तथ्यों और संभावनाओं के साथ रिपोर्ट जमा करेंगे.
निम्न विभागों में से कोई भी बैठक की कार्यवाही में सम्मिलित नहीं हुआ –
1. भूजल विभाग, उत्तर प्रदेश,
2. केंद्रीय भूजल प्राधिकरण,
3. मामूली सिंचाई विभाग, यूपी,
4. कृषि और बागवानी विभाग, यूपी,
5. विकास प्राधिकरण,
6. वन विभाग, और
7. नगर निगम (नगर निगम, नगर पालिका).
हिंडन कैचमेंट एरिया :
इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि उत्तर प्रदेश राज्य में हिंडन नदी का लगभग 98% क्षेत्रफल मौजूद है. बैठक में मौजूद अधिकारियों से अनुरोध किया गया था कि वे जलग्रहण क्षेत्र की स्थिति के तथ्यों को प्रदान करें. समिति को सूचित किया गया कि विकास प्राधिकरणों को जलग्रहण क्षेत्र के प्रशासन के साथ कार्य सौंपा गया है. समर्थन में सरकारी आदेश संख्या – 1416 का उल्लेख किया गया था. परन्तु न तो सरकारी आदेश के पूर्ण विवरण और न ही समिति के समक्ष विचार-विमर्श के लिए प्रतियाँ रखी गयी. बैठक में नोडल अधिकारी से अनुरोध किया गया कि उपरोक्त निर्दिष्ट आदेश संख्या 1416 की एक प्रति उपलब्ध कराई जाए.
समिति को यूपी सिंचाई के एक अधिकारी ने आगे सूचित किया है कि हिंडन जलग्रहण क्षेत्र को लगभग 3,00,000 अवैध निर्माणों के साथ अतिक्रमण किया गया है. अधिकारी ने लिखित रिपोर्ट के साथ सहायक विवरण देने के लिए कहा, जिस पर जानकारी प्रदान करते हुए अधिकारी ने कहा कि ऐसा कोई डेटा और रिपोर्ट उनके साथ नहीं है.
हिंडन कायाकल्प परियोजना द्वारा प्रकाशित और मेरठ डिवीज़न के अतिरिक्त आयुक्त द्वारा समर्थित त्रैमासिक ब्रोशर (अप्रैल-जून, 2018) की पृष्ठ संख्या 11 के अनुसार, अधीक्षक अभियंता, सिंचाई निर्माण विभाग की जानकारी के मुताबिक गाजियाबाद और गौतमबुद्ध नगर जिलों के भीतर हिंडन नदी के जलग्रहण क्षेत्र वाले इलाके में लगभग 3,00,000 लोग रह रहे हैं. इस जानकारी को ध्यान में रखते हुए, यूपी सिंचाई विभाग को एक सटीक मूल्यांकन करने और इस मामले में निर्णायक कार्रवाई के लिए विस्तृत रिपोर्ट तैयार करने का निर्देश दिया गया था. इसके प्रत्युत्तर में उत्तर प्रदेश सिंचाई विभाग ने अब तक कुछ कदम उठाए होंगे.
पीपीटी में बताया गया कि 23 ड्रेनेज (08 औद्योगिक, 05 मिश्रित, 08 घरेलू, 02 नहर) अंतत: (15 सीधे हिंडन में, काली पश्चिम के माध्यम से 04 और कृष्णा के माध्यम से 04) हिंडन नदी से मिलते हैं. पीपीटी ने स्लाइड के माध्यम से यह भी कहा कि हिंडन नदी, काली पश्चिम और कृष्णी नदी की जल गुणवत्ता ‘ई’ समूह में आती है, यानि यह केवल सिंचाई के लिए उपयोग की जा सकती है. समिति को सूचित किया जाता है कि प्रमुख सिंचाई विभाग हिंडन नदी और इसकी सहायक नदियों में गिरने वाली नालों का संरक्षक है. समाधान के लिए अनुरोध किया गया कि..
1. यूपी सिंचाई (प्रमुख और माइनर) विभागों ने मामलों में आज तक की गई कार्रवाई के सभी सटीक विवरणों के साथ अपनी रिपोर्ट प्रदान करे, और
2. उपाध्यक्ष, गाजियाबाद विकास प्राधिकरण और मुख्य कार्यकारी अधिकारी, नई ओखला औद्योगिक विकास प्राधिकरण, उनके कमांड एरिया के भीतर हिंडन कैचमेंट क्षेत्र के प्रबंधन इत्यादि के संबंध में स्थिति रिपोर्ट प्रदान करे.
उपरोक्त रिपोर्ट अगली बैठक में विचार-विमर्श के लिए हमारे सामने रखी जाने वाली इस निगरानी समिति के सचिव को चार प्रतियों में प्रदान की जाएगी.
गैर अनुपालन उद्योगों के खिलाफ कार्रवाई :
एनजीटी ने 12.07.2018 दिनांकित आदेश 08.08 के आदेश के साथ पढ़ा. 2018 में उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को उन 124 उद्योगों को बंद करने के लिए निर्देशित किया गया है, जो पहले समिति की रिपोर्ट में सुझाए गए मानकों का पालन नहीं कर रहे थे. गैर अनुपालन उद्योगों के अभियोजन पक्ष के संबंध में, उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के लिए आश्वासन दिया गया था कि 08.08.2018 से छह सप्ताह के भीतर अभियोजन पक्ष शुरू किया जाएगा, जो प्रदूषण के निर्वहन की जिम्मेदार इकाइयों के खिलाफ कार्यवाही करेंगे. मॉनीटरिंग कमेटी ने अपनी पहली बैठक में इस मुद्दे को उठाया था, जब समिति को सूचित किया गया था कि अभियोजन पक्ष का प्रारंभ नहीं किया जा सका क्योंकि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के कार्यालय से संबंधित दस्तावेज प्राप्त नहीं हो पाए थे. इस बाधा को देखते हुए यह निर्णय लिया गया था कि उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का अधिकारी केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के कार्यालय का दौरा कर और वहां से सभी आवश्यक दस्तावेज प्राप्त कर सकता है. मामले में प्रगति करने के लिए कहा जा रहा है, उत्तर प्रदेश नियंत्रण बोर्ड के सदस्य सचिव ने सूचित किया कि केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने अभी तक ऐसे दस्तावेज उपलब्ध नहीं कराए हैं, जो एक सफल अभियोजन पक्ष के लिए अनिवार्य रूप से आवश्यक हैं.
समिति के सदस्य, श्री जे चंद्र बाबू ने बताया कि सक्षम प्राधिकारी द्वारा अभियोजन पक्ष के लिए स्वीकृति मिलने के बाद ही यूपीपीसीबी को प्रमाणित प्रतियां मिल सकती हैं. उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सदस्य सचिव ने बयान दिया कि सक्षम प्राधिकारी ने अभियोजन पक्ष के लिए पहले से ही मंजूरी दे दी है कि जब एनजीटी ने 124 प्रदूषक उद्योगों के अभियोजन पक्ष के लिए निर्देश दिया है, तो अभियोजन पक्ष को सभी भौतिक दस्तावेजों और रिपोर्टों के साथ अनिवार्य रूप से प्रक्षेपण किया जाना चाहिए.
समिति के अध्यक्ष द्वारा कहा गया कि साक्ष्य अधिनियम के धारा 63 के अनुसार, दस्तावेज़ों की सामग्री प्राथमिक रूप से या तो दस्तावेजों द्वारा अथवा कानूनी रूप से मान्यता प्राप्त माध्यमिक साक्ष्यों द्वारा साबित की जा सकती है, जिनमें यह सब शामिल हैं :
1. विधिवत जारी प्रमाणित प्रतियां,
2. यांत्रिक प्रक्रिया द्वारा मूल रूप से बनाई गई प्रतियां जो स्वयं प्रतिलिपि की वैधता सुनिश्चित करती हैं तथा,
3. वास्तविक या तुलनात्मक रूप से तैयार की गई प्रतियां.
समिति को सूचित किया जाता है कि, 124 गैर-अनुपालन उद्योगों को बंद करने की दिशा में कार्रवाई की गई है. अनुपालन में कार्रवाई को विस्तारित करने के लिए, उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सदस्य सचिव ने अद्यतन किया कि निम्नलिखित 55 उद्योगों को कारण बताओ नोटिस जारी किए गए हैं :
यह पारदर्शी है कि इकाइयों को कारण बताओ नोटिस जारी किए गए थे :
1- 03.08.2018 को उद्योग संख्या 01 से 24, 27, 2 9, 30, 34, 35, 37, 3 9, 40, 42, 43, 46, 47 से 54 पर,
2- 06.08.2018 को उद्योग नंबर 25, 26, 28, 31, 32, 33, 36, और 55 पर,
3- 31.07.2018 को उद्योग नंबर 38 पर,
4- 05.09.2018 को उद्योग नंबर 41 पर, और
5- 20.09.2018 को उद्योग नंबर 44 और 45 पर.
औद्योगिक संख्या 44 और 45 के अतिरिक्त सभी इकाइयों से जवाब प्राप्त हुआ, परन्तु कारण बताओ नोटिस के उपरांत की गई कार्रवाई का संक्षिप्त विवरण इस समिति के समक्ष नहीं रखा गया है. एनजीटी के निर्देशों के अनुपालन में कार्रवाई की जा रही है, इसके चलते त्वरित कानूनी कार्रवाई की उम्मीद है. इस निगरानी समिति द्वारा आगे मूल्यांकन के लिए सभी 55 उपरोक्त औद्योगिक इकाइयों के संबंध में किए गए कार्यों की वर्तमान स्थिति को तुरंत समिति को सचिव को प्रदान किया जाना चाहिए.
उपर्युक्त तथ्य यह भी स्पष्ट करेंगे कि पहली बैठक के बाद केवल सूक्ष्म प्रगति हुई है, जो अक्षम है. अधिकारियों के लिए स्पष्ट किया गया है कि केवल कथनात्मक कार्यवाही या कागजी कार्यवाही से अब काम नहीं चलेगा.
यूपीपीसीबी के सदस्य सचिव, आगे सूचित करते हैं कि निम्नलिखित औद्योगिक इकाइयों के संबंध में क्लोजर आदेश जारी किए गए हैं :
निगरानी समिति की तीसरी बैठक का संभावी एजेंडा :
इस निगरानी समिति की तीसरी बैठक 25.10.2018 को लखनऊ में 10:30 बजे आयोजित की जाएगी. मुख्य सचिव, यूपी राज्य सरकार द्वारा अधिसूचित नोडल अधिकारी और नोडल विभाग सभी संबंधित अधिकारियों एवं विभागों को सूचना के तहत सभी आवश्यक व्यवस्था करनी होगी, जो इस प्रकार होगी :
1. क्षेत्र में पहचाने गए 317 गैर-औद्योगिक, औद्योगिक इकाइयों एवं उद्योगों की सूची से नोएडा / ग्रेटर नोएडा, गाजियाबाद, बागपत, शामली, मेरठ, मुजफ्फरनगर, सहारनपुर में गैर-अनुपालन वाली औद्योगिक इकाइयों का बंद होना. प्रत्येक उद्योग के संबंध में सभी तथ्यों के साथ विशिष्ट रिपोर्ट प्रदान की जानी चाहिए.
2. 124 गैर-अनुपालन औद्योगिक इकाइयों की सूची से नोएडा / ग्रेटर नोएडा, गाजियाबाद, बागपत, शामली, मेरठ, मुजफ्फरनगर, सहारनपुर में गैर-अनुपालन वाली औद्योगिक इकाइयों के अभियोजन पक्ष में प्रगति होनी अनिवार्य है. निम्नलिखित सहित सभी विवरणों के साथ प्रत्येक उद्योग के संबंध में सभी तथ्यों के साथ विशिष्ट रिपोर्ट प्रदान की जानी चाहिए :
2.1 शिकायत दर्ज करने की तारीख,
2.2 शिकायत केस संख्या,
2.3 न्यायालय जिसमें शिकायत दर्ज की गई है, और
2.4 कार्यवाही की वर्तमान स्थिति.
3. नोएडा / ग्रेटर नोएडा, गाजियाबाद, बागपत, शामली, मेरठ, मुजफ्फरनगर, सहारनपुर में पीड़ितों की पहचान और उनका उपचार. मुख्य चिकित्सा अधिकारी माननीय एनजीटी की दिशा के अनुपालन में की गयी प्रत्येक कार्यवाही का विवरण प्रदान करेंगे.
4. नोएडा / ग्रेटर नोएडा, गाजियाबाद, बागपत, शामली, मेरठ, मुजफ्फरनगर, सहारनपुर में सुरक्षित पेयजल प्रदान करना। नगर निगम / नगर पालिका परिषद / पंचायत / जल निगम इत्यादि सहित सभी प्राधिकरण माननीय एनजीटी की दिशा के अनुपालन में किए गए प्रत्येक कार्यवाही का विवरण प्रदान करेंगे.
5. हिंडन नदी जलग्रहण क्षेत्र के प्रबंधन आदि. नई ओखला औद्योगिक विकास प्राधिकरण, नोएडा; औद्योगिक विकास प्राधिकरण, ग्रेटर नोएडा; गाजियाबाद विकास प्राधिकरण, गाजियाबाद; बागपत विकास प्राधिकरण, बागपत; शामली विकास प्राधिकरण, शामली; मेरठ विकास प्राधिकरण, मुजफ्फरनगर विकास प्राधिकरण, मुजफ्फरनगर और सहारनपुर विकास प्राधिकरण, हिंडन के जलग्रहण वाले क्षेत्र के प्रबंधन के संबंध में सभी आवश्यक डेटा के साथ अपनी रिपोर्ट प्रदान करेंगे, जिसमें अतिक्रमण / अवैध निर्माण और अब तक की गयी कार्यवाही की जानकारी शामिल होगी. यदि बागपत और शामली के अंतर्गत उक्त समय तक कोई विकास प्राधिकरण नहीं है, उस स्थिति में हिंडन नदी के जलग्रहण क्षेत्र पर नियंत्रण और प्रबंधन कर रहा प्राधिकरण उपर्युक्त विवरण प्रदान करेगा.
प्रतिभागियों / आमंत्रितों से अनुरोध किया जाना चाहिए कि वे सबसे नवीनतम जानकारी / डेटा और अनुपालन रिपोर्ट के साथ अगली बैठक के लिए तैयार हों सके.
यह स्पष्ट किया गया कि निगरानी समिति की बैठक में अर्थहीन भीड़ का गठन करने वाले अधिकारियों की आवश्यकता नहीं है. सभी प्रतिभागियों को बैठक के लिए अच्छी तरह तैयार होना चाहिए.इस समिति के सचिव श्री प्रमोद कुमार गोयल को ईमेल के द्वारा सभी संबंधित विभागों / अधिकारियों / अधिकारियों को सूचित किया जाना चाहिए कि सहायक सामग्री (विधिवत टैग और अनुक्रमित) के साथ अनुपालन रिपोर्ट (docx प्रारूप में भी सॉफ्ट कॉपी) सीलबंद कवर में बैठक से कम से कम चार दिन पहले चार सुस्पष्ट प्रतियों में प्रदान की जाए. नोडल अधिकारी एवं नोडल विभाग बैठक की मिनटों को डाउनलोड करेगा और सभी संबंधित विभागों एवं अधिकारियों को उपरोक्त अनुरोध के साथ हार्ड कॉपी भेजी जाएगी.
नोडल विभाग और नोडल अधिकारी इस समिति के सचिव के लिए सभी आवश्यक सुविधाएं सुनिश्चित करेंगे. समिति के सचिव, श्री प्रमोद कुमार गोयल के मेरठ निवास (ए-97, सेक्टर-2, शताब्दी नगर, दिल्ली रोड, मेरठ) में मूल कार्यालय के साथ ही एक शिविर कार्यालय निर्मित किया जाएगा, जिसमें सभी आवश्यक सामग्री, जैसे; डाक टिकट, डेस्क टॉप कंप्यूटर, प्रिंटर, लैंड लाइन, फर्नीचर और अन्य उपकरण उप[लब्ध कराए जायेंगे.
इस समिति की अवधि के दौरान इंटरनेट सुविधा और मानव शक्ति (कम से कम एक वर्ग 3 और एक वर्ग 4 का कर्मचारी) सचिव के साथ संलग्न रहेगी, ताकि पत्रों के समय पर प्रेषण के साथ रिपोर्ट्स का संग्रहण और विश्लेषण आदि नियमित रूप से किया जा सके. शिविर कार्यालय का प्रबंधन और नियंत्रण सचिव श्री प्रमोद कुमार गोयल द्वारा किया जाएगा.