हिंडन नदी की प्रमुख सहायक नदियां काली (पश्चिम ) कृष्णी , पुर का टांड़ा की धार , धमोला, पाँवधोई, शीला, नागदेव व चाचाराव हैं , जबकि सहायक धाराएं बरसनी, सपोलिया, छज्जेवाली, पीरवाली, कोठरी, अंधाकुन्डी व स्रोती हैं । ये सभी एक साथ मिलकर ही हिण्डन को नदी बनाती हैं। ये सभी एक निश्चित दूरी व स्थान पर हिण्डन नदी में आकर मिलती रहती है । जहां पर कोठारी धारा नदी के मुख्य भाग से मिलती है , उसे कोठारी मिलान अथवा दुजाला   ( दो जलों का मिलन ) के नाम से जानते हैं |  शिवलिक पहाड़ियों  से ही हिंडन के साथ – साथ हिंडन की पश्चिमी दिशा से नागदेव नदी निकलती है | नागदेव नदी के करीब 45 किलोमीटर की दूरी तय करने के पश्चात् सहारनपुर से ही घोघ्रेकी गाँव के जंगल में आकर हिंडन नदी में मिल जाती है | बरसात के दौरान इस नदी में अधिक मात्रा में पानी बहता है | यह हिंडन नदी में पानी का मुख्य स्त्रोत है |

 

हिंडन की बड़ी सहायक नदियों में काली ( पश्चिम ) जोकि हिंडन नदी की पूर्वी दिशा से सहारनपुर जनपद के गंगाली गाँव से प्रारम्भ होकर मुजजफरनगर से होते हुए करीब 145 किलोमीटर का सफर तय  करके मेरठ जनपद के गाँव पीठोलकर के जंगल मे जाकर हिंडन नदी में समाहित होती है | काली (पश्चिम ) में चिड़ियाला से प्रारम्भ होने वाली शीला नदी देवबंद के पास मतोली गाँव के निकट आकार पहले ही समा चुकी होती है |  हिंडन में मिलने से पहले काली (पश्चिम) नदी में मुजफ्फरनगर शहर से करीब 25 किलोमीटर की दूरी पर अपर गंगा नहर खतौली से एक नाले के मध्यम से करीब 1000 क्यूसेक पानी अंबरपुरगाँव के जंगल में डाला जाता रहा  है |

वर्तमान में यह पानी तकनीकी समस्या के चलते नहीं डाला जा रहा है | इससे पहले सहारनपुर जानपद में निर्मल हींडन कार्यक्रम के तहत अपर गंगा नहर के भानेड़ा  स्केप से करीब  1०० क्यूसेक पानी काली (पश्चिम) नदी में डालना प्रारम्भ किया गया है । यह नदी देश की सर्वाधिक प्रदूषित नदियों में से एक है क्योकि इसमे मुज़जफरनगर जनपद के छोटे-बड़े करीब 80 उद्योगों का गैर शोधित तरल कचरा तथा मुजफ्फरनगर शहर का गैर- शोधित घरेलू बहिस्त्राव सीधे बहता है । हिण्डन व काली (पश्चिम ) के मिलने के स्थान पर काली (पश्चिम ) में करीब 80 प्रतिशत और हिण्डन यें मात्र 20 प्रतिशत पानी ही होता है ।

हिण्डन नदी पूर्वी दिशा से सहारनपुर नगर के ही दादरी गाँव से निकलने  वाली कृष्णा नदी शामली व बागपत जनपदों से होते हुए करीब  358 किलोमीटर का सफर तय करके बागपत जनपद के ही बरनावा कस्बे के जंगल में जाकर हीण्डन नदी में विलीन हो जाती है । यह नदी भी भयंकर प्रदूषण का दंश झेलती है । कृष्णा नदी में नानौता ,सिक्का , थाना भवन , चारथवाल , शामली व बागपथ के उद्योगों का गैर-शोधित तरल कचरा तथा गैर – शोधित घरेलू बहिस्राव मिलता है जिसको कि अंत में हिण्डन यें उड़ेल दिया जाता है। कृष्णा नदी में पूर्वी यमुना नहर से शामली के निकट खेड़ी  करमू गांव से एक नाले में 50 क्यूसेक पानी  निर्मल हिंडन कार्यक्रम के तहत डालना प्रारंभ किया गया  है । यह नाला सल्फा गांव के निकट कृष्णा नदी में  मिलता है । सहारनपुर जनपद ने ही हिण्डन की पश्चिमी दिशा में  स्थित संसारगुर गांव से प्रारम्भ होकर करीब 25 किलोमीटर का सफर तय करके धमोला नदी सहारनपुर जनपद के ही ऐतिहासिक शरकथाल गांव के जंगल में जाकर हिण्डन में मिलती है । शरकथाल गांव सढ़ौली  हरिया गांव का ही एक मजरा है । धमौला की सहायक नदी पांवधोई जो कि सहारनपुर जनपद के ही शंकलापुरी गांव के निकट से बहती है | यहां प्राचीन महादेव मंदिर स्थित है । यहां से ऊपरी भाग में महारबानी गाँव के निकट से आने वाले दो बरसाती नाले खुर्द व गुना भी पांवधोई में आकर मिल जाते हैं ।

पांवधोई नदी शंकलापुरी  से करीब 7 किलोमीटर की दूरी तय करके  सहारनपुर शहर के अंदर जाकर धमोला नदी में मिल जाती है । पांवधोई के उद्धम में साफ पानी है क्योंकि यह नदी चौये (जमीन से अपने आप निकलने वाला पानी) के पानी से बहती है , लेकिन इस साफ पानी में धमोला तक आते –आते  सहारनपुर शहर का गैर-शोधित घरेलू बहिस्राव मिल चुका होता है । शांता नदी सहारनपुर शहर के तमाम घरेलू बहिस्राव तथा पांवधोई द्धारा उसमें डाली गयी गंदगी को ढ़ोकर लाती है और उस सब कचरे  को हिण्डन नदी में डाल देती है ।