गंगा-यमुना के दोआब में सहारनपुर जनपद से प्रारम्भ होकर मुजफरनगर, शामली, मेरठ, बागपत व गाजियाबाद से होते हुए अंत में जब हिण्डन नदी गौतमबुद्धनगर जनपद के तिलवाड़ा गांव से पश्चिम व मोमनाथल गांव से पूर्व में यमुना में मलीन होती है तो इसमें बहते हुए काले रंग के बदबूदार पानी को देखकर कोई कह नहीं सकता है कि यह एक जीवित नदी है। यही नहीं अगर किसी अन्जान व्यक्ति को इस स्थान पर लाकर पूछा जाए कि यह कौन सी धारा है तो वह शर्तिया ही इसे गंदा नाला कहकर सम्बोधित करेगा। इसके विपरीत जब यह नदी अपने मायके अर्थात उद्गम स्थल सहारनपुर जनपद में शिवालिक की पहाड़ियों के ढलान कालूवाला पास से चलकर नीचे आती है तो यहां के साफ-शुद्ध पानी को देखकर हर कोई जरूर कहेगा कि यह तो अमृत जल है। हिण्डन नदी जब प्रकृति के बीच से साफ-शुद्ध पानी लेकर चलती है तो आखिर कैसे वह पानी इंसानों की बस्तियों से गुजरते ही मैला-कुचैला और बदबूदार हो जाता है? इस स्थिति को देखते हुए यह स्थापित सत्य है कि हिण्डन नदी का गुनहगार कोई और नहीं बल्कि हम स्वयं हैं। 

उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा पुर का टांडा से निकलने वाली धारा को ही हिण्डन नदी माना जाता रहा है। सेटेलाइट मैपिंग व ब्रिटिश गजेटियर के आधार पर देखें तो हिण्डन का उद्गम मुजफराबाद जनपद में शिवालिक हिल्स बताया जाता है। ब्रिटिश गजेटियर व सेटेलाइट मैपिंग को आधार मानते हुए ही मेरी हिण्डन-मेरी पहल का एक दल मार्च, 2017 में हिण्डन के वास्तिविक उद्गम की खोज के लिए निकला। हिण्डन उद्गम तक पहुंचने के लिए मोहण्ड व शाहजहांपुर वन क्षेत्र से निकलकर नदी के निकट बसे अंतिम गांव कालूवाला टोंगिया तक वाहन पहुंचना संभव है। यहां से हिण्डन नदी के तल में करीब आठ किलोमीटर दूर पैदल चलकर बरसनी फाॅल तक पहुंचा जा सकता है। नदी का यह तल करीब 100 मीटर चैड़ा है। बरसनी फाॅल पर पानी करीब 100 फीट उपर से नीचे लगातार झरने के रूप में गिरता रहता है। इस धारा को बरसनी नदी के नाम से भी जानते हैं। इसमें मिलने वाली अन्य धाराओं में पहाड़ों पर होने वाली बरसात का पानी व पहाड़ों पर लगे वृक्षों की जड़ों से निकलने वाला पानी आता है। यहां नदी के तल के नीचे भी नदी बहती है। क्योंकि यहां बसे वन गूर्जर एक से दो फीट का गड्ढा खोदकर पीने के लिए पानी निकाल लेते हैं। पहाड़ के उपर से निकले वाली यह धारा जहां तक पुर का टांडा वाली धारा में आकर मिलती है वहां तक नदी बहुत चैड़ी है तथा उसमें साफ-शुद्ध पानी भी है।

हिण्डन नदी सहारनपुर जनपद से प्रारम्भ होकर गौतमबुद्धनगर जनपद में जाकर यमुना में समाहित हो जाती है। काली पश्चिम, कृष्णी, धमोला, पांवधोई, नागदेव, चाचाराव, सपोलिया, अंधाकुन्डी व स्रोती जैसी अन्य छोटी धाराएं मिलकर हिण्डन को नदी बनाती हैं। उद्गम से यमुना में समाहित होने तक हिण्डन की कुल लम्बाई करीब 355 किलोमीटर है।

हिण्डन नदी का उद्गम सहारनपुर जनपद के पुर का टांडा गांव को माना जाता रहा है। पुर का टांडा के जंगल से बरसात के समय पानी एकत्र होकर बहने वाला पानी नदी की एक धारा बनाता था। यह धारा सहारनपुर जनपद के ही कमालपुर गांव के जंगल में जाकर कालूवाला की पहाड़ियों से साफ-शद्ध पानी लेकर आने वाली कालूवाला खोल अर्थात हिण्डन में मिल जाती है। इस स्थान पर करीब 90 प्रतिशत पानी कालूवाला खोल की धारा से आता है जबकि करीब 10 प्रतिशत पानी ही पुर का टांडा से निकलने वाली धारा से आता है।

कालूवाला नदी जोकि हिण्डन नदी है, वह शिवालिक की पहाड़ियों अर्थात कालूवाला पास से प्रारम्भ होती है। यह बरसाती नदी है। इसमें छोटी अन्य सहायक धाराएं भी आकर मिलती हैं। सहारनपुर में उत्तर प्रदेश व उत्तराखण्ड की सीमा को बांटने वाली शिवालिक वन मण्डल की पहाड़ियों के दक्षिण की ओर ढलान पर कालूवाला पास व कोठरी मिलान से जो धारा बहकर चलती है उसको बरसनी नदी के नाम से जाना जाता है। बरसनी में कुछ छोटी धाराओं के स्रोत, छज्जेवाली, पीरवाली, सपोलिया, कोठरी व अंधाकुन्डी एक निश्चित दूरी पर आकर मिलते रहते हैं। इस स्थान पर शिविलिक आरक्षित वन मण्डल भी है जिसमें कि मोहण्ड, शाहजहांपुर व शाकुम्भरी वन क्षेत्र आता है। शिवालिक पहाड़ियों की चोटी से उत्तर प्रदेश की ओर ढ़लान से लेकर आरक्षित वन क्षेत्र समाप्त होने तक की दूरी करीब 15 किलोमीटर है। इस 15 किलोमीटर की दूरी में हिण्डन नदी के दोनों ओर पहाड़ व घना जंगल है। इन पहाड़ों पर होने वाली वर्षा का पानी भी हिण्डन की मुख्य धारा में आता है। इसके अतिरिक्त वृक्षों की जड़ों से रिसने वाला पानी भी मुख्य धारा में मिलता रहता है। बरसात के समय इनमें भरपूर पानी आता है, जोकि नीचे तक बहते हुए जाता है। इन सभी धाराओं के मिलने से जो नदी बनती है वही हिण्डन है, जोकि पुर का टांडा गांव से बहने वाली धारा को अपने आप में कमालपुर गांव के निकट मिला लेती है। ऊपरी क्षेत्र में बसे गांव के निवासी व वन गुर्जर हालांकि हिण्डन को वहां कालूवाला खोल, बरसनी व गुलेरिया आदि नामों से भी पुकारते हैं लेकिन वे यह भी बताते हैं कि ये हमारे बोलने के नाम हैं लेकिन यह हिण्डन नदी है। हम अगर गंगा नदी के संबंध में देखें तो भगीरथी व अलकनंदा मिलकर ही गंगा बनाती हैं, इसी प्रकार कालूवाला धारा व पुर का टांडा से निकलने वाली धारा ही हिण्डन बनाती है।

शिवालिक पहाड़ियों से ही हिण्डन के साथ-साथ हिण्डन की पश्चिम दिशा से एक अन्य धारा निकलती है जिसे नागदेव नदी के नाम से जाना जाता है, यह नागदेव नदी करीब 45 किलोमीटर की दूरी तय करने के पश्चात् सहारनपुर में ही घोघ्रेकी गांव के जंगल में आकर हिण्डन नदी में मिल जाती है।

हिण्डन की बड़ी सहायक नदियों में काली पश्चिम जोकि हिण्डन नदी की पूर्वी दिशा से सहारनपुर जनपद के ही गंगाली गांव से प्रारम्भ होकर मुजफ्फरनगर से होते हुए करीब 145 किलोमीटर का सफर तय करके मेरठ जनपद के गांव पिठलोकर के जंगल में जाकर हिण्डन नदी में समाहित होती है। काली पश्चिम में चुड़ियाला से प्रारम्भ होने वाली शीला नदी देवबंद के पास मतोली गांव के निकट आकर काली नदी पश्चिम में पहले ही समा चुकी होती है। हिण्डन में मिलने से पहले काली पश्चिम नदी में मुजफ्फरनगर शहर से करीब 25 मिलोमीटर की दूरी पर अपर गंगा नहर खतौली से एक नाले के माध्यम से करीब 1000 क्यूसेक पानी अम्बरपुर गांव के जंगल में डाला जाता रहा है। वर्तमान में यह पानी तकनीकि समस्या के चलते नहीं डाला जा रहा है। इससे पहले सहारनपुर जनपद अपर गंगा नहर के भनेड़ा स्केप से करीब 100 क्यूसेक पानी काली पश्चिम नदी में डालना प्रारम्भ किया है। यह नदी देश की सर्वाधिक प्रदूषित नदियों में से एक है क्योंकि इसमें मुजफ्फरनगर जनपद के छोटे-बड़े करीब 80 उधोगों का गैर-शोधित तरल कचरा तथा मुजफरनगर शहर का गैर-शोधित घरेलू तरल कचरा सीधे बहता है। हिण्डन व काली पश्चिम के मिलने के स्थान पर काली पश्चिम में करीब 80 प्रतिशत और हिण्डन में मात्र 20 प्रतिशत पानी होता है।

हिण्डन नदी की पूर्वी दिशा से सहारनपुर जनपद के ही दरारी गांव से निकलने वाली कृष्णी नदी शामली व बागपत जनपदों से होते हुए करीब 153 किलोमीटर का सफर तय करके बागपत जनपद के ही बरनावा कस्बे के जंगल में जाकर हिण्डन नदी में विलीन हो जाती है। यह नदी भी भयंकर प्रदूषण का दंश झेलती है। कृष्णी नदी में ननौता, सिक्का, थानाभवन, चरथावल, शामली व बागपत के उधोगों का गैर-शोधित तरल कचरा तथा गैर-शौधित घरेलू तरल कचरा मिलता है जिसको कि अंत में हिण्डन में उड़ेल दिया जाता है।

सहारनपुर जनपद में ही हिण्डन की पश्चिमी दिशा से संसारपुर गांव से प्रारम्भ होकर करीब 25 किलोमीटर का सफर करके धमोला नदी सहारनपुर जनपद के ही ऐतिहासिक शरकथाल गांव के जंगल में जाकर हिण्डन में मिलती है। शरकथाल गांव सढ़ौली हरिया गांव का एक मजरा है और यह ऐतिहासिक भी है। धमोला नदी में उसकी एक सहायक नदी पांवधोई सहारनपुर के ही शकलापुरी गांव के निकट से बहती है, यहां ऐतिहासिक महादेव मन्दिर भी स्थित है। यहां से ऊपरी भाग में महरबानी गांव के निकट से आने वाले दो बरसाती नाले खुर्द व गुना कट भी पांवधोई में आकर मिल जाते हैं। शंकलापुरी से करीब 7 किलोमीटर की दूरी तय करके सहारनपुर शहर के अंदर जाकर धमोला नदी में मिल जाती है। पांवधोई के उद्गम में साफ पानी है क्योंकि यह नदी चैये के पानी से बहती है, लेकिन इस साफ पानी में धमोला तक आते-आते सहारनपुर शहर का गैर-शोधित तरल कचरा मिल चुका होता है। धमोला नदी सहारनपुर शहर का तमाम सीवर का पानी तथा पांवधोई द्वारा उसमें डाली गई गंदगी को ढ़ोकर लाती है और उस सब कचरे को हिण्डन नदी में उड़ेल देती है।

हिण्डन में मिलने वाली उसकी सहायक नदियां या सहायक छोटी धाराएं उसको नदी का रूप देती हैं। इस नदी में प्रदूषण का बड़े स्तर पर प्रारम्भ सीधे तौर पर सहारनपुर जनपद के ही परागपुर गांव के जंगल में स्टार पेपर मिल के गैर-शोधित तरल कचरा लेकर आने वाले नाले के मिलने से हो जाता है। यहां से हिण्डन में गंदगी का प्रवेश होना प्रारम्भ होता है। इससे पहले नागदेव नदी के माध्यम से कुछ छोटे उधोग अपना गैर-शोधित तरल कचरा नौगजा पीर के पास डालते हैं, लेकिन वह तरल कचरा हिण्डन तक बहुत कम मात्रा में आ पाता है। सहारनपुर की पहाड़ियों से जो हिण्डन नदी साफ पानी लेकर चलती है वह सहारनपुर ही उसके पानी को अपनी सीमा से बाहर निकलने से पहले ही जहरीले तत्वों व बदबू से भर देता है।

सहारनपुर जनपद से आगे यह नदी मुजफ्फरनगर व शामली जनपदों की सीमा में प्रवेश करती है। हिण्डन नदी को सीमा रेखा मानकर ही मुजफ्फरनगर व शामली जनपदों की सीमाएं तय की गई हैं। हिण्डन के पूर्व में मुजफ्फरनगर और पश्चिम में शामली जनपद है। इन दोनों जनपदों में सीधे तौर पर कृषि बहिस्राव व बुढ़ाना कस्बे का तरल व ठोस कचरा भी हिण्डन में मिलता रहता है, लेकिन जैसे ही हिण्डन मेरठ की सीमा में प्रवेश करती है तो मेरठ जनपद में मेरठ-मुजफ्फरनगर सीमा पर बसे गांव पिठलोकर के जंगल में हिण्डन नदी के पूर्व से बहकर आने वाली काली पश्चिम नदी में मिल जाती है।

मुजफ्फरनगर-शामली की सीमा से आगे बढ़ते हुए हिण्डन नदी मेरठ व बागपत जनपदों में प्रवेश कर जाती है। इन दोनों जनपदों का भी हिण्डन नदी को सीमा रेखा मानकर ही बंटवारा किया गया है। हिण्डन के पूर्व में मेरठ जनपद है जबकि पश्चिम में बागपत जनपद। यहां से हिण्डन करीब दस किलोमीटर आगे बढ़ती है तो हिण्डन के पश्चिम से बहकर आने वाली कृष्णी नदी बरनावा गांव के निकट हिण्डन में मिल जाती है। बरनावा से पहले हिण्डन नदी के पूर्व में स्थित मेरठ जनपद के सरधना कस्बे से आने वाला एक गंदा नाला भी मेरठ जनपद के ही कलीना गांव के जंगल में हिण्डन में मिल चुका होता है।

यहां से हिण्डन नदी आगे बढ़ती है तो हिण्डन नदी के पूर्व में मेरठ जनपद में अपर गंगा नहर के जानी एस्केप से करीब 1500 क्यूसेक पानी हिण्डन में डाल दिया जाता है। जानी एस्केप की करीब 2000 क्यूसेक पानी डालने की क्षमता है। यह पानी मेरठ-बागपत मार्ग से दो किलोमीटर पहले मौहम्मदपुर धूमी गांव के जंगल में डाला जाता है। यहां से आगे नदी में पानी का बहाव बढ़ जाता है और कुछ साफ भी हो जाता है। यह पानी हिण्डन में इसलिए डाला जाता है जिससे कि मोहननगर से एक नहर के माध्यम से निकालकर यह पानी आगरा नहर में भेजा जा सके। यहां से आगे बढ़ते हुए हिण्डन कुछ अन्य उधोगों, कस्बों व गांवों का गैर-शोधित तरल व ठोस कचरा अपने आप में समाहित करके गाजियाबाद की सीमा में प्रवेश कर जाती है। गाजियाबाद जनपद में हिण्डन की चुनौतियां अधिक बढ़ जाती हैं, यहां जहां शहर का सीवेज व ठोस कचरा तथा उधोगों का तरल कचरा नदी को बद से बदतर स्थिति में ले जाता है वहीं नदी के बेसिन पर किया गया अतिकरमण एक गंभीर समस्या पैदा करता है।

हिण्डन नदी के पानी को गाजियाबाद के मोहननगर कस्बे में एक बैराज बनाकर रोक दिया जाता है, यहां से नदी के कुल पानी का करीब 30 फीसदी पानी ही आगे जाने दिया जाता है। बचा हुआ पानी हिण्डन के पश्चिम से एक नहर के माध्यम से यमुना नदी में कालंदी कुंज बैराज भेज दिया जाता है। मोहननगर से निकलने वाली यह नहर कालंदीकुंज में यमुना नदी में पूर्व की दिशा से जाकर मिलती है, जितना पानी हिण्डन नहर के माध्यम से यमुना नदी में डाला जाता है, उतना ही पानी कालंदीकुंज में ही यमुना नदी की पश्चिमी दिशा से निकलने वाली आगरा नहर में भेज दिया जाता है। जो पानी मेरठ जनपद में हिण्डन नदी में जानी एस्केप से डाला गया होता है व इस प्रकार से मोहननगर से होते हुए कालंदीकुंज के रास्ते आगरा को जाने वाली नहर तक पहुंचता है।

मोहननगर बैराज पर भी हिण्डन में गाजियाबाद के सीवर व उधोगों के नाले लगातार मिलते रहते हैं। बैराज से आगे बढ़ते हुए हिण्डन गौतमबुद्धनगर में प्रवेश करती है तो वहां गाजियाबाद से भी विकराल समस्या हिण्डन को झेलनी पड़ती है। यहां पर उधोगों का तरल कचरा, सीवरेज व अतिकरमण जैसी गंभीर समस्याएं हिण्डन की हत्या की साजिश में अंतिम किरदार निभाती हैं। जैसे-तैसे हिण्डन यमुना नदी के निकट तक पहुंचती है। यमुना में मिलने से दो किलोमीटर पहले अपर गंगा नहर से करीब 400 क्यूसेक पानी हिण्डन की पूर्वी दिशा की ओर से हिण्डन नदी में डाल दिया जाता है, लेकिन हिण्डन नदी पर जहरीली गंदगी का बोझ इतना अधिक होता है कि वह उसमें बहुत अधिक असर नहीं डाल पाता है।

हिण्डन व उसकी सहायक नदियों में बहते अत्यधिक प्रदूषित पानी के कारण नदी किनारे बसे गांव-कस्बों का भूजल भी जहरीला हो चुका है। सैंकड़ों गांवों में जल जनित गंभीर बीमारियां पनप रही हैं। सैंकड़ों लोग जनजनित जानलेवा बीमारियों के कारण असमय काल के मुंह में समा चुके हैं। कुछ किसान हिण्डन व उसकी सहायक नदियों में बहने वाले जहरीले पानी से जाने-अनजाने अपनी फसलों की सिंचाई भी करते हैं, जिस कारण से जहां उनके खेतों की कृषि मिट्टी में परसिसटेंट आॅरगेनिक पाल्यूटेंटस जैसे तत्व पाए गए हैं वहीं उस मिट्टी में पैदा हुई सब्जियां व अन्य फसलों में भी कीटनाशकों के तत्व मिले हैं।राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण के आदेश के पश्चात् हिण्डन व उसकी सहायक नदियों के किनारे बसे गांवों से सैंकड़ों की संख्या में हैण्डपम्प उखाड़े जा चुके हैं। जिन नदियों के किनारे सभ्यताएं बसती थीं वहां भयंकर जल प्रदूषण की त्रासदी के कारण बस्तियां उजड़ने की कगार पर हैं। नदी में प्रदूषण का प्रतिशत इतना है कि नदी के पानी को छूना तो दूर उसके पास खड़ा होना भी दूभर हो चला है। बुजुर्गों के अनुसार जिस नदी के पानी की तली में पड़ा हुआ सिक्का दिखता था उस पानी को हाथ में लेने पर अब हाथ की रेखाएं भी नहीं दिखती हैं।

अंत में हिण्डन नदी मोमनाथल गांव के पूर्व तथा तिलवाड़ा गांव के पश्चिम के जंगल में सहारनपुर की शिवालिक से चलने वाली जीवित हिण्डन गुमसुम रहकर यमुना नदी में समाहित हो जाती है। एक जीवित नदी का दुखदः अंत देखकर यमुना भी नम आंखों से हिण्डन का स्वागत करती है और दोनों नदियां एक होकर आगे बढ़ जाती हैं।

 

हिण्डन व उसकी सहायक नदियों का विवरण

हिण्डन नदी, उदगम स्थल – शिवालिक की पहाड़ियां, (कालूवाला पास) जनपद -सहारनपुर (उत्तर प्रदेश), विलीन स्थल-  गांव- तिलवाड़ा/मोमनाथल गांव, जनपद-गौतमबुद्धनगर (उत्तर प्रदेश), लम्बाई- 355

कृष्णी नदी, उदगम स्थल – दरारी गांव, सहारनपुर जनपद (उत्तर प्रदेश), विलीन स्थल-   गांव -बरनावा, जनपद-बागपत (उत्तर प्रदेश), लम्बाई- 153

काली नदी (पश्चिम), उदगम स्थल – गंगाली गांव, जनपद-सहारनपुर (उत्तर प्रदेश), विलीन स्थल-   गांव-अटाली/पिठलोकर गांव जनपद-मेरठ (उत्तर प्रदेश), लम्बाई- 145

शीला नदी, उदगम स्थल – कस्बा-भगवानपुर, जनपद-हरिद्धार (उत्तराखण्ड), विलीन स्थल-  गांव-मतौली, जनपद-सहारनपुर (उत्तर प्रदेश), लम्बाई-61

धमोला नदी, उदगम स्थल – संसारपुर गांव, सहारनपुर जनपद (उत्तर प्रदेश), विलीन स्थल-  शरकथाल/सढ़ौली हरिया गांव, जनपद-सहारनपुर (उत्तर प्रदेश), लम्बाई-52

पांवधोई नदी, उदगम स्थल – गांव-शंकलापुरी, जनपद-सहारनपुर (उत्तर प्रदेश), विलीन स्थल-  सहारनपुर शहर, सहारनपुर जनपद (उत्तर प्रदेश), लम्बाई- 7

नागदेव नदी, उदगम स्थल – कोठारी गांव, सहारनपुर (उत्तर प्रदेश), विलीन स्थल-   घोंघ्रेकी गांव, सहारनपुर जनपद (उत्तर प्रदेश), लम्बाई- 45

चाचा रौ, उदगम स्थल – गांव, सहारनपुर जनपद (उत्तर प्रदेश), विलीन स्थल-  कमालपुर गांव, सहारनपुर जनपद (उत्तर प्रदेश), लम्बाई-18

रमन कान्त

निदेशक 

नीर फाउंडेशन, सदस्य, निर्मल हिण्डन